Sayari Message
Gir gir kar sambhalta raha hu zindagi bhar
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए !
Ab mujhe kabhi thokro se darr nahi lagta
Darr lagta h toh sirf dushman ki najaro se
Ab mohabbat karne walo se darr nahi lagta
Ab mohabbat karne walo se darr nahi lagta
“जीत” किसके लिए ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए,
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए !
जलते बुझते दिये सा लग रहा हूँ
मैं अंदर ही अंदर भभक रहा हूँ
मैं अंदर ही अंदर भभक रहा हूँ
किसी और की ज़रूरत ही क्या मुझे अब
मैं ठहरा खुदगर्ज खुद ही खुद को ठग रहा हूँ
मैं ठहरा खुदगर्ज खुद ही खुद को ठग रहा हूँ
ये कैसी आग है जो जलती नहीं
बुझकर भी अश्क़ों के साये में सुलग रहा हूँ
बुझकर भी अश्क़ों के साये में सुलग रहा हूँ
शख्स था जो मुझमें जाने कहाँ चला गया
असल में भी अब तो नकल सा लग रहा हूँ।
असल में भी अब तो नकल सा लग रहा हूँ।
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